Saturday 10 December 2011

हस्ती...

ऐसा लगता है उसने मुझे कुछ यूं दुआ दी है
जैसे काँटों में खुदा ने फूलों को पनाह दी है

यूं आवाज़ दी थी उसने बिछड़ते वक़्त मुझे
सहरा में जैसे किसी मुसाफिर ने सदा दी है

देखकर क़िस्मत को ये लगता है अब मुझे
मुक़द्दर ने जैसे मुझको बेवज़ह सजा दी है

ग़लत है दुनिया में अगर किसी को चाहना यारों
तो जिंदगी में हमने बहुत बड़ी ख़ता की है

लौटना मुमकिन नहीं मेरा अब यहाँ से कभी
किसी की ख़ातिर मैंने अपनी हस्ती लुटा दी है

2 comments:

kshama said...

ऐसा लगता है उसने मुझे कुछ यूं दुआ दी है
जैसे काँटों में खुदा ने फूलों को पनाह दी है
Bahut,bahut sundar!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल

Related Posts with Thumbnails