Monday 14 November 2011

इक ज़माना हो गया

नाम पर रब के फ़क़त पैसा कमाना हो गया
ज़हन मुल्ला पंडितों का ताजराना हो गया

अब मुझे शुद्धीकरण की कोई इच्छा ही नहीं
आंसुओं में डूबना गंगा नहाना हो गया

क्या खबर अब पीपल-ओ-तुलसी का कैसा हाल हो
गांव को छोड़े हुए तो इक ज़माना हो गया

आज तक दिल से गई कब गांव की माटी की गंध
मुझको रहते इस शहर में इक
ज़माना हो गया

क्या
ज़माना था मगर अब क्या ज़माना हो गया
आदमी तो बे हिसी का इक ठिकाना हो गया

ज़िंदगी से मेरा रिश्ता जब पुराना हो गया
तब नए रिश्तों का
घर में आना-जाना हो गया

इस से बढ़कर और क्या होगा मुहब्बत का सबूत
रात को तूने कहा दिन मैंने माना हो गया

2 comments:

kshama said...

क्या खबर अब पीपल-ओ-तुलसी का कैसा हाल हो
गांव को छोड़े हुए तो इक ज़माना हो गया

आज तक दिल से गई कब गांव की माटी की गंध
मुझको रहते इस शहर में इक ज़माना हो गया
Kya khoob alfaaz hain!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अब मुझे शुद्धीकरण की कोई इच्छा ही नहीं
आंसुओं में डूबना गंगा नहाना हो गया

क्या खबर अब पीपल-ओ-तुलसी का कैसा हाल हो
गांव को छोड़े हुए तो इक ज़माना हो गया

बहुत खूबसूरत गज़ल

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