Monday 28 November 2011

रंज

तुझ सी सूरत नहीं मिलती है मुझे लाखों में
आजकल नींद नहीं आती है
मुझे रातों में

वही दीवार वही दर है वही चौखट है
पर नहीं कोई खड़ा पानी लिए हाथों में

चाँद तारे नहीं अब और न परियों का
हुजूम
मुख़्तसर लोरी नहीं गाता कोई अब रातों में

दिन गुज़र जाता है इस भीड़ में तन्हां-तन्हां
अश्क़ होते हैं भरी आँख बातों-बातों में

देर से आने पर अब कौन नसीहत देगा
कौन दे हौसला मुश्किल भरे हालातों में

तर्ज़ुमानी मैं तेरे प्यार की कैसे कर दूं
तू मुश्किल है ढल पाना मेरे खयालातों में

क़तरा-क़तरा है लहू मेरा तेरे कर्ज़े में
तेरा
मुजरिम हूँ खड़ा हाथ लिए हाथों में

रंज इस बात का जीने नहीं देता मुझको
कुछ कमी रह गई थी मेरे ही ज़ज्बातों में

अब चली आ या बुला ले मुझे भी पास तेरे
मेरा दिल भर गया रिश्तों की ख़ुराफातों से

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल

vandana gupta said...

रंज़ इस बात का जीने नहीं देता मुझको
कुछ कमी रह गई थी मेरे ही ज़ज्बातों में

अब चली आ या बुला ले मुझे भी पास तेरे
मेरा दिल भर गया रिश्तों की ख़ुराफातों से

बेहतरीन शानदार गज़ल ……………बहुत सुन्दर भावो को पिरोया है।

kshama said...

Behad achhee rachana hai...sirf wartanee me sudhar layen to char chand lag jayenge...jaise"hojoom" chahiye na ki"hozoom" Usee tarah"ranj"tatha "mujrim" ."Z" ke badle " j" ka prayog karen.Aasha hai aap bura nahee manenge!

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