Tuesday 11 October 2011

मेरे जन्मदिन पर पूज्य पिता को शब्दांजलि











मेरे पिता-
एक प्राचीन घर की सबसे मज़बूत दीवार
जिसने  थम रखी थी घर की छत
भवन के नींव की वो पहली ईंट
जिसने बहुमन्जिला इमारतों की ताबीर गढ़ी 
घर की वो विस्तृत छत 
जिसने सदैव सर पर छाया बनाए रखा
मेरे पिता-
सर के ऊपर का वो खुला आसमान
जिसने सदैव विस्तार की प्रेरणा दी  
धरा की वो ठोस धरातल
जिसने अपने पोषक रसों से हमें हरा-भरा बनाए रखा
वो अथाह और अनन्त सागर
जिसने विशालता और गम्भीरता का पाठ पढ़ाया
मेरे पिता-
महकते उपवन के एक कर्मठ योगी 
जिसने फूलों को सदा महकना सिखाया
फूलों की वो माला
जिसने त्याग और सौंदर्य की शिक्षा दी
और माला को जोड़ने वाली वो धागा
जिसने माला को उसका स्वरूप दिया
मेरे पिता-
ऊंचाई तक पहुँचाने वाली एक सीढ़ी 
स्वच्छंद उड़न को प्रेरित करने वाले पंख 
जीवन के अनिवार्य आदर्श 
सह्रदयता  का सजीव चित्रण 
भावना के अनुपम स्वरुप 
शुभकामनाओं की घनी छाँव 
प्रेरणा के अनवरत स्त्रोत 
ममता का कोमल स्पर्श
प्रकाश की अभिव्यक्ति 
कर्म की पराकाष्ठा  
धर्म का प्रदर्शन
प्रकृति के साक्षात् दर्शन
नश्वर होकर भी अनश्वर गुणों के स्वामी  
मेरे पिता-
रामायण की चौपाई 
गीता के श्लोक 
पुराणों के शब्द
उपनिषदों के छंद 
और वेदों के तत्व
मेरे पिता-

माँ की ममता

बहन की दुलार

भाई का प्रेम

और मित्र का स्वभाव

मेरी पहचान केवल इतनी है कि मैं

उस घने और विशाल वृक्ष का एक फल हूँ 

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