Tuesday 6 December 2011

इंतज़ार



 

तेरे फिराक़ के लम्हे शुमार करते हुए
बिखर गए हैं तेरा इंतज़ार करते हुए

तो मैं भी खुश हूँ कोई उससे जाके कहदे
अगर वो खुश है मुझे बेक़रार करते हुए

मैं मुस्कराता हुआ आईने में उभर आऊंगा
तू रो पड़ेगी अचानक श्रृंगार करते हुए

तुम्हें खबर ही नहीं कोई कैसे टूट गया
मोहब्बत का बेशुमार इक़रार करते हुए

वो कहती थी समन्दर नहीं हैं आँखें हैं
मैं उनमें डूब गया ऐतबार करते हुए

मुझे खबर थी कि अब लौटकर न आओगे
पर तुझको याद किया दर को पार करते हुए

3 comments:

kshama said...

मैं मुस्कराता हुआ आईने में उभर आऊंगा
तू रो पड़ेगी अचानक श्रृंगार करते हुए
Kya baat hai!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ..अच्छी गज़ल

Amrita Tanmay said...

कमाल लिखा है..

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