खुश थे अकेले-तन्हा सफ़र में हम
कि इत्तेफ़ाक़ से एक अंजाना साथी मिल गया
साथ चला वो कुछ दूर ऐसे कि लगा
मुझको सारा ज़माना मिल गया
चलते-चलते हुआ वो मेहरबान
हम पे कुछ इस तरह
जैसे प्यार से कोई दीवाना मिल गया
मंजिल अलग थी हमारी मुश्किल था सफ़र
मेरा इतना समझना और उसे मुझसे
अलग होने का बहाना मिल गया
कुछ इस तरह चली आंधी रात में
फिर से अकेले रह गए हम और
फिर से सफ़र वीराना मिल गया...
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Thursday, 20 October 2011
कुछ इस तरह...
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