Monday 10 October 2011

...श्रद्धांजलि...


Tribute To JAGJEET SINGH

 



एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तन्हाई भी

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं

कितनी सौंधी लगती है तब मांझी की रुसवाई भी

दो-दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में

मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी

खामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी खामोशी है

उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
 
- गुलज़ार

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