Wednesday 12 October 2011

गुमनाम ही लिख दो

दिल उदास है बहुत कोई पैगाम तो लिख दो
अपना नाम न लिखो, गुमनाम ही लिख दो

मेरी किस्मत में ग़म-ए-तन्हाई है लेकिन
तमाम उम्र न लिखो एक शाम ही लिख दो

ज़रूरी नहीं कि मिल जाए सुकून हर किसी को
सर-ए-बज़्म न आओ मगर बेनाम ही लिख दो

जानता हूँ कि उम्रभर तन्हा ही रहना है मुझे
पल दो पल, घड़ी दो घड़ी, मेरे नाम लिख दो

मान लेते हैं सजा के लायक भी नहीं हम
कोई इनाम न लिखो कोई इल्ज़ाम ही लिख दो .

1 comment:

kshama said...

जानता हूँ कि उम्रभर तन्हा ही रहना है मुझे
पल दो पल, घड़ी दो घड़ी, मेरे नाम लिख दो

मान लेते हैं सजा के लायक भी नहीं हम
कोई इनाम न लिखो कोई इल्ज़ाम ही लिख दो .
Behtareen alfaaz!

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