बना-बना के तमन्ना मिटाई जाती है।
तरह-तरह से वफ़ा आज़माई जाती है॥
जब उन को मेरी मुहब्बत का ऐतबार नहीं।
तो झुका-झुका के नज़र क्यों मिलाई जाती है॥
हमारे दिल का पता वो हमें नहीं देते।
हमारी चीज़ हमीं से छुपाई जाती है॥
'शकील' दूरी-ए-मंज़िल से ना-उम्मीद न हो।
मंजिल अब आ ही जाती है अब आ ही जाती है॥
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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Monday 24 January 2011
Friday 21 January 2011
कोई रोता रहा था याद होगा
ग़ज़ल का सिलसिला था याद होगा
वो जो इक ख़्वाब-सा था याद होगा
बहारें-ही-बहारें नाचती थीं
हमारा भी खुदा था याद होगा
समन्दर के किनारे सीपियों से
किसी ने दिल लिखा था याद होगा
लबों पर चुप-सी रहती है हमेशा
कोई वादा हुआ था, याद होगा
तुम्हारे भूलने को याद करके
कोई रोता रहा था याद होगा
बगल में थे हमारे घर तो लेकिन
ग़ज़ब का फ़ासला था याद होगा
हमारा हाल तो सब जानते हैं
हमारा हाल क्या था याद होगा
वो जो इक ख़्वाब-सा था याद होगा
बहारें-ही-बहारें नाचती थीं
हमारा भी खुदा था याद होगा
समन्दर के किनारे सीपियों से
किसी ने दिल लिखा था याद होगा
लबों पर चुप-सी रहती है हमेशा
कोई वादा हुआ था, याद होगा
तुम्हारे भूलने को याद करके
कोई रोता रहा था याद होगा
बगल में थे हमारे घर तो लेकिन
ग़ज़ब का फ़ासला था याद होगा
हमारा हाल तो सब जानते हैं
हमारा हाल क्या था याद होगा
रचनाकार: तुफ़ैल चतुर्वेदी
Thursday 20 January 2011
काश! ताजमहल बन जाऊं..?
आँसू ने कहा मुझको ठहरने दो पलक पर
आँखों को तेरी देख सकूँ और झलक भर
मैं जानता हूँ तुमको कोई ज़ख़्म बड़ा है
फूटेगा किसी रोज़ तो हर एक घड़ा है
लेकिन तड़प किताब के भीतर का फूल है
किसने सहेज कर रखा कोई भी शूल है
आसान है हर गम के पन्नों को पलट दो
फिर जीस्त पर रंगीन सा एक नया कवर दो
गुल की कलम लगाओ, तोता खरीद लाओ
तारों को फूल जैसे सारे बिखेर डालो
मुस्कान की चाबी से घर चाँद का भी खोलो
चाहो तो सूखी आँखों से मन के पास रो लो
लेकिन जो मर गये हैं, वो सपने सहेजते हो
फिर ताजमहल बनकर जीने की हसरते हैं
अपने लहू से गुल को रंगीन कर रहे हो
सुकरात जैसा प्याला पीने की हसरते हैं
तुम मुस्कुरा रहे हो, मैं हो रहा हूँ आतुर
मैं कीमती हूँ कितना, तुमको पता नहीं है
लेकिन कि ठहरता हूँ, पारस है आँख तेरी
बुझती नहीं है सागर, क्योंकर के प्यास मेरी
मैं चाहता हूँ ठहरूँ, उस कोर... वहीं पर
आँखों को तेरी देख सकूँ, और झलक भर...
आँखों को तेरी देख सकूँ और झलक भर
मैं जानता हूँ तुमको कोई ज़ख़्म बड़ा है
फूटेगा किसी रोज़ तो हर एक घड़ा है
लेकिन तड़प किताब के भीतर का फूल है
किसने सहेज कर रखा कोई भी शूल है
आसान है हर गम के पन्नों को पलट दो
फिर जीस्त पर रंगीन सा एक नया कवर दो
गुल की कलम लगाओ, तोता खरीद लाओ
तारों को फूल जैसे सारे बिखेर डालो
मुस्कान की चाबी से घर चाँद का भी खोलो
चाहो तो सूखी आँखों से मन के पास रो लो
लेकिन जो मर गये हैं, वो सपने सहेजते हो
फिर ताजमहल बनकर जीने की हसरते हैं
अपने लहू से गुल को रंगीन कर रहे हो
सुकरात जैसा प्याला पीने की हसरते हैं
तुम मुस्कुरा रहे हो, मैं हो रहा हूँ आतुर
मैं कीमती हूँ कितना, तुमको पता नहीं है
लेकिन कि ठहरता हूँ, पारस है आँख तेरी
बुझती नहीं है सागर, क्योंकर के प्यास मेरी
मैं चाहता हूँ ठहरूँ, उस कोर... वहीं पर
आँखों को तेरी देख सकूँ, और झलक भर...
रचनाकार: राजीव रंजन प्रसाद
Monday 17 January 2011
जिसे भूले वो सदा याद आया
जो भी दुख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया
फिर कोई हाथ है दिल पर जैसे
फिर तेरा अहदे-वफ़ा[1]याद आया
जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल
एक-इक नक़्श[2]तिरा याद आया
ऐसी मजबूरी के आलम[3]में कोई
याद आया भी तो क्या याद आया
ऐ रफ़ीक़ो[4]! सरे-मंज़िल जाकर
क्या कोई आबला-पा[5]याद आया
याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया
जब कोई ज़ख़्म भरा दाग़ बना
जब कोई भूल गया याद आया
ये मुहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया
शब्दार्थ:
1. ↑ वफ़ादारी का प्रण
2. ↑ मुखाकृति
3. ↑ हालत,अवस्था
4. ↑ मित्रो
5. ↑ जिसके पाँवों में छाले पड़े हुए हों
1. ↑ वफ़ादारी का प्रण
2. ↑ मुखाकृति
3. ↑ हालत,अवस्था
4. ↑ मित्रो
5. ↑ जिसके पाँवों में छाले पड़े हुए हों
रचनाकार : फ़राज़
Saturday 15 January 2011
मुझे सताना छोड़ दे
उससे कह दो मुझे सताना छोड़ दे
दूसरों के साथ रहकर मुझे हर पल जलाना छोड़ दे
या तो कर दे इनकार मुझसे महोब्बत नहीं
या गुजरता देख मुझको पलटकर मुस्कुराना छोड़ दे
ना कर बात मुझसे कोई गम नहीं
यूँ आवाज सुनकर मेरी झरोखे पर आना छोड़ दे
कर दे दिल-ए-बयां जो छिपा रखा है
यूँ इशारों में हाल बताना छोड़ दे
क्या इरादा है बता दे अब मुझे
यूँ दोस्तों को मेरे किस्से सुनाना छोड़ दे
है पसंद मुझको जो लिबास तेरा
उस लिबास में बार-बार आना छोड़ दे
ना कर याद मुझे बेशक तू
पर किताबो पर नाम लिखकर मिटाना छोड़ दे
खुदा कर सके ये किस्सा आसान अगर
या तो तू मेरी हो जा या मुझे अपना बनाना छोड़ दे
Thursday 13 January 2011
दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ
अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता
बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ
मैं ख़्वाब नहीं आपकी आँखों की तरह था
मैं आपका लहजा नहीं अस्लोब रहा हूँ
इस शहर के पत्थर भी गवाही मेरी देंगे
सहरा भी बता देगा कि मजज़ूब रहा हूँ
रुसवाई मेरे नाम से मंसूब रही है
मैं ख़ुद कहाँ रुसवाई से मंसूब रहा हूँ
दुनिया मुझे साहिल से खड़ी देख रही है
मैं एक जज़ीरे की तरह डूब रहा हूँ
फेंक आए थे मुझको भी मेरे भाई कुएँ में
मैं सब्र में भी हज़रते अय्यूब रहा हूँ
सच्चाई तो ये है कि तेरे क़ुर्रअ-ए-दिल में
ऐसा भी ज़माना था कि मैं ख़ूब रहा हूँ
शोहरत मुझे मिलती है तो चुपचाप खड़ी रह
रुसवाई, मैं तुझसे भी तो मंसूब रहा हूँ
तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ
अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता
बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ
मैं ख़्वाब नहीं आपकी आँखों की तरह था
मैं आपका लहजा नहीं अस्लोब रहा हूँ
इस शहर के पत्थर भी गवाही मेरी देंगे
सहरा भी बता देगा कि मजज़ूब रहा हूँ
रुसवाई मेरे नाम से मंसूब रही है
मैं ख़ुद कहाँ रुसवाई से मंसूब रहा हूँ
दुनिया मुझे साहिल से खड़ी देख रही है
मैं एक जज़ीरे की तरह डूब रहा हूँ
फेंक आए थे मुझको भी मेरे भाई कुएँ में
मैं सब्र में भी हज़रते अय्यूब रहा हूँ
सच्चाई तो ये है कि तेरे क़ुर्रअ-ए-दिल में
ऐसा भी ज़माना था कि मैं ख़ूब रहा हूँ
शोहरत मुझे मिलती है तो चुपचाप खड़ी रह
रुसवाई, मैं तुझसे भी तो मंसूब रहा हूँ
रचनाकार: मुनव्वर
Friday 7 January 2011
आदत हो गई है..!
उसे मुझे सताने की आदत हो गई है
दिल मेरा दुखाने की आदत हो गई है
वो जानती है मैं उस पर मरता हूँ फिर भी
दिल मेरा जलाने की आदत हो गई है
उसे ये भी पता है मैं उसे मुस्कुराते देखना चाहता हूँ
पर मुझे देखकर उसे मुंह फिराने की आदत हो गई है
उसका ज़िक्र आते ही मैं खो सा जाता हूँ कहीं
मेरी बात आते ही उसे बातें बनाने की आदत हो गई है
वो रातों को जागती है अक़सर मुझे याद करके
मगर जागने की झूठी वज़ह बताने की आदत हो गई है
उस पर ऐतबार इतना है कि कह नहीं सकता
पर उसे मुझसे नज़रें चुराने की आदत हो गई है
वो मेरा ख़ुदा तो नहीं पर ख़ुदा से कम भी नहीं
पर उसे मुझसे दूर जाने की आदत हो गई है
"इस पर भी देखिए मेरी चाहत का आलम
मुझे उसकी इस आदत से भी मोहब्बत हो गई है"
दिल मेरा दुखाने की आदत हो गई है
वो जानती है मैं उस पर मरता हूँ फिर भी
दिल मेरा जलाने की आदत हो गई है
उसे ये भी पता है मैं उसे मुस्कुराते देखना चाहता हूँ
पर मुझे देखकर उसे मुंह फिराने की आदत हो गई है
उसका ज़िक्र आते ही मैं खो सा जाता हूँ कहीं
मेरी बात आते ही उसे बातें बनाने की आदत हो गई है
वो रातों को जागती है अक़सर मुझे याद करके
मगर जागने की झूठी वज़ह बताने की आदत हो गई है
उस पर ऐतबार इतना है कि कह नहीं सकता
पर उसे मुझसे नज़रें चुराने की आदत हो गई है
वो मेरा ख़ुदा तो नहीं पर ख़ुदा से कम भी नहीं
पर उसे मुझसे दूर जाने की आदत हो गई है
"इस पर भी देखिए मेरी चाहत का आलम
मुझे उसकी इस आदत से भी मोहब्बत हो गई है"
Tuesday 28 December 2010
माँ...
माँ.. तू जो नही है तो...
मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ बाप को रोते हुए मर जाना है
घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गईं
मिट्टी लिपट—लिपट गई पैरों से इसलिए
तैयार हो के भी कभी हिजरत न कर सके
मुफ़लिसी! बच्चे को रोने नहीं देना वरना
एक आँसू भरे बाज़ार को खा जाएगा...
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ बाप को रोते हुए मर जाना है
घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गईं
मिट्टी लिपट—लिपट गई पैरों से इसलिए
तैयार हो के भी कभी हिजरत न कर सके
मुफ़लिसी! बच्चे को रोने नहीं देना वरना
एक आँसू भरे बाज़ार को खा जाएगा...
Saturday 25 December 2010
खुद से डर गया हूँ मैं...
एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं
क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं
अब है बस अपना सामना दरपे
शहर किसी से गुज़र गया हूँ मैं
वो ही नाज़-ओ-अदा, वो ही घमजे
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं
अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
कभी खुद तक पहुँच नहीं पाया
जब के वाँ उम्र भर गया हूँ मैं
तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरह, खुद से डर गया हूँ मैं...
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं
क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं
अब है बस अपना सामना दरपे
शहर किसी से गुज़र गया हूँ मैं
वो ही नाज़-ओ-अदा, वो ही घमजे
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं
अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
कभी खुद तक पहुँच नहीं पाया
जब के वाँ उम्र भर गया हूँ मैं
तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरह, खुद से डर गया हूँ मैं...
Tuesday 21 December 2010
दर्द के सिवाय कुछ नहीं!
यह बेवकूफ़ी है!
समझदारी कहती है
यह वो है जो वो है
प्यार कहता है
यह बदक़िस्मती है
हिसाब कहता है
यह दर्द के सिवाय
कुछ नहीं है
डर कहता है
यह उम्मीदों से खाली है
बुद्धिमानी कहती है
यह वो है जो वो है
प्यार कहता है
यह बेतुका है
अभिमान कहता है
यह लापरवाही है
सावधानी कहती है
यह नामुमकिन है
तजुर्बा कहता है
यह वो है जो
प्यार कहता है!
Saturday 18 December 2010
सफर भी लगे अब फसाने के जैसे!
रुखसत से होकर बैठे हैं ऐसे
खुशियाँ मिली हों ज़माने की जैसे,
नुमाइश भी कोई नहीं करने वाला
सूरत भी नहीं मेरी दीवाने के जैसे,
मैं चुपचाप सहमा हूँ बैठा कहीं पे
कोई भी नहीं है मुझे सुनने वाला,
सभी पूछते हैं हुआ क्या है तुझको
तेरी शक्ल क्यों है रुलाने के जैसे,
जब निकला था घर से बहुत हौसला था
के पा लूँगा मंजिल डगर चलते-चलते,
न अब हौसला है न अब रस्ते हैं
सफर भी लगे अब फसाने के जैसे!
खुशियाँ मिली हों ज़माने की जैसे,
नुमाइश भी कोई नहीं करने वाला
सूरत भी नहीं मेरी दीवाने के जैसे,
मैं चुपचाप सहमा हूँ बैठा कहीं पे
कोई भी नहीं है मुझे सुनने वाला,
सभी पूछते हैं हुआ क्या है तुझको
तेरी शक्ल क्यों है रुलाने के जैसे,
जब निकला था घर से बहुत हौसला था
के पा लूँगा मंजिल डगर चलते-चलते,
न अब हौसला है न अब रस्ते हैं
सफर भी लगे अब फसाने के जैसे!
Thursday 16 December 2010
चेहरे पे खराशें हैं, आइना बदलते हैं
हम उनकी कयादत में न चलते थे न चलते हैं
मौसम की तरह जो हरदम रंग बदलते हैं
वो भूल गए मेरी आँखों को दिखा सपने
यादों के दीए अक्सर तन्हाई में जलते हैं
देखेगा जहाँ एक दिन "गौतम" ये लगी दिल की
क्यों आग में जलने को परवाने मचलते हैं
उर्दू तो मोहब्बत को परवान चढ़ाती है
तासीर-ऐ-असर इसके पत्थर भी पिघलते हैं
रहते हैं सदा हम तो मुश्किल की पनाहों में
अपनी है यही फितरत गिर-गिर के संभलते हैं
है अपने रक़ीबों का एहसान बड़ा हम पर
उनकी ही बदौलत तो हम मौत से लड़ते हैं
दिल तोड़ने वाले को एहसास नहीं होता
चेहरे पे खराशें हैं, आइना बदलते हैं
मौसम की तरह जो हरदम रंग बदलते हैं
वो भूल गए मेरी आँखों को दिखा सपने
यादों के दीए अक्सर तन्हाई में जलते हैं
देखेगा जहाँ एक दिन "गौतम" ये लगी दिल की
क्यों आग में जलने को परवाने मचलते हैं
उर्दू तो मोहब्बत को परवान चढ़ाती है
तासीर-ऐ-असर इसके पत्थर भी पिघलते हैं
रहते हैं सदा हम तो मुश्किल की पनाहों में
अपनी है यही फितरत गिर-गिर के संभलते हैं
है अपने रक़ीबों का एहसान बड़ा हम पर
उनकी ही बदौलत तो हम मौत से लड़ते हैं
दिल तोड़ने वाले को एहसास नहीं होता
चेहरे पे खराशें हैं, आइना बदलते हैं
Monday 29 November 2010
दो कदम तो साथ चलने दो
हमसफ़र न बनाओ न सही
दो कदम तो साथ चलने दो
रुत बदल जाएगी
समां बदल जाएगा
शायद कभी तुम्हारा
मन भी बदल जाएगा
मैं साथ हूँ साथ ही रहूँगा
उम्मीद का दीपक जलने दो
हमसफ़र न बनाओ न सही
दो कदम तो साथ चलने दो
मैं चुप रहूँगा
कुछ भी न कहूँगा
मेरी धड़कन सुनो
अपनी खामोशी सुनने दो
मुझे अपने साथ-साथ बहने दो
दो कदम तो साथ चलने दो
दो कदम तो साथ चलने दो
रुत बदल जाएगी
समां बदल जाएगा
शायद कभी तुम्हारा
मन भी बदल जाएगा
मैं साथ हूँ साथ ही रहूँगा
उम्मीद का दीपक जलने दो
हमसफ़र न बनाओ न सही
दो कदम तो साथ चलने दो
मैं चुप रहूँगा
कुछ भी न कहूँगा
मेरी धड़कन सुनो
अपनी खामोशी सुनने दो
मुझे अपने साथ-साथ बहने दो
दो कदम तो साथ चलने दो
Monday 4 October 2010
पत्थर देवता हो जाएगा
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझसे ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों
ज़हर भी इस में अगर होगा दावा हो जाएगा
सब उसी के हैं हवा, खुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहाँ भी जाऊंगा उसको पता हो जाएगा
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर
क्या खबर थी मुझसे वो इतना खफा हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझसे ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों
ज़हर भी इस में अगर होगा दावा हो जाएगा
सब उसी के हैं हवा, खुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहाँ भी जाऊंगा उसको पता हो जाएगा
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर
क्या खबर थी मुझसे वो इतना खफा हो जाएगा
Thursday 19 August 2010
पांव की ज़ंजीर क्या है देख ले!
आह क्या, तासीर क्या है देख ले
इश्क़ तक़दीर क्या है देख ले
गुफ्तगूँ करने का ढंग तू सीख ले
कहती ये तस्वीर क्या है देख ले
सूखी झीलों का तू मंजर देख और
बह गया जो नीर क्या है देख ले
लज्ज़तें हैं लाज़वाब इसमें ज़नाब
प्रीत की ये पीर क्या है देख ले
जिंदगी गुज़री है अपनी उनके साथ
कौन ग़ालिब, मीर क्या है देख ले
तू तो बस ये ज़िंदगी तदबीर कर
करती फिर तक़दीर क्या है देख ले
तुमने देखा है अभी तक आसमां
पांव की ज़ंजीर क्या है देख ले
इश्क़ तक़दीर क्या है देख ले
गुफ्तगूँ करने का ढंग तू सीख ले
कहती ये तस्वीर क्या है देख ले
सूखी झीलों का तू मंजर देख और
बह गया जो नीर क्या है देख ले
लज्ज़तें हैं लाज़वाब इसमें ज़नाब
प्रीत की ये पीर क्या है देख ले
जिंदगी गुज़री है अपनी उनके साथ
कौन ग़ालिब, मीर क्या है देख ले
तू तो बस ये ज़िंदगी तदबीर कर
करती फिर तक़दीर क्या है देख ले
तुमने देखा है अभी तक आसमां
पांव की ज़ंजीर क्या है देख ले
Sunday 8 August 2010
मेरी 'जानेमन'!
तू दुखी न हो, मैं तेरे पास हूँ
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
तेरे दिल की बात मैंने सुन ली है
बस ज़रा सा रुक मेरी 'जानेमन'
तू ठहर ज़रा उसी छाँव में
हम मिले थे जहाँ, जिस गाँव में
न परेशान हो, न हैरान हो
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
तू सुन ज़रा मेरे मन की बात
जब कहा था मैंने मैं हूँ तेरे साथ
न निराश हो, न हताश हो
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
तेरे प्यार की उम्मीद है
तेरी रूह का अहसास है
तू ज़रा ठहर, ज़रा सब्र कर
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
है मुझे कसम तेरे प्यार की
है फ़िक़र तेरे इंतज़ार की
तुझे है सदा ऐ मेरे सनम
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
तेरे दिल की बात मैंने सुन ली है
बस ज़रा सा रुक मेरी 'जानेमन'
तू ठहर ज़रा उसी छाँव में
हम मिले थे जहाँ, जिस गाँव में
न परेशान हो, न हैरान हो
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
तू सुन ज़रा मेरे मन की बात
जब कहा था मैंने मैं हूँ तेरे साथ
न निराश हो, न हताश हो
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
तेरे प्यार की उम्मीद है
तेरी रूह का अहसास है
तू ज़रा ठहर, ज़रा सब्र कर
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
है मुझे कसम तेरे प्यार की
है फ़िक़र तेरे इंतज़ार की
तुझे है सदा ऐ मेरे सनम
मैं आ रहा हूँ मेरी 'जानेमन'
Tuesday 3 August 2010
ज़रूरत क्या थी..?
यूं हमको सताने की ज़रूरत क्या थी
दिल मेरा चुराने की ज़रूरत क्या थी
जो नहीं था इश्क़ तो कह दिया होता
होश मेरे उड़ने की ज़रूरत क्या थी
मालूम था अगर ये ख़ाब टूट जाएगा
नींदों में आकर जगाने की ज़रुरत क्या थी
मान लूं अगर ये एकतरफा मोहब्बत थी
फिर मुझे देखकर मुस्कुराने की ज़रुरत क्या थी
दिल मेरा चुराने की ज़रूरत क्या थी
जो नहीं था इश्क़ तो कह दिया होता
होश मेरे उड़ने की ज़रूरत क्या थी
मालूम था अगर ये ख़ाब टूट जाएगा
नींदों में आकर जगाने की ज़रुरत क्या थी
मान लूं अगर ये एकतरफा मोहब्बत थी
फिर मुझे देखकर मुस्कुराने की ज़रुरत क्या थी
Sunday 18 July 2010
...बेखुदी नहीं आई!
सदा ग़म ही मिले, कभी ख़ुशी नहीं आई
हमने जब भी पुकारा, ज़िंदगी नहीं आई
रोज़ देखते हैं हम साथ रहने का ख़ाब
कभी जो हसरत की, हमनशीं नहीं आई
नसीब है किसी को यहाँ उम्रभर का ग़म
उम्र गुज़र गया हमें कभी बेरुखी नहीं आई
वो बात जो कहा था कभी देखके तुझे
उस बात का असर है, मुझे बेखुदी नहीं आई
हमने जब भी पुकारा, ज़िंदगी नहीं आई
रोज़ देखते हैं हम साथ रहने का ख़ाब
कभी जो हसरत की, हमनशीं नहीं आई
नसीब है किसी को यहाँ उम्रभर का ग़म
उम्र गुज़र गया हमें कभी बेरुखी नहीं आई
वो बात जो कहा था कभी देखके तुझे
उस बात का असर है, मुझे बेखुदी नहीं आई
Saturday 5 June 2010
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे...
बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे
Thursday 13 May 2010
कोई दिल चुराए तो क्या कीजिए
कोई दिल में आए तो क्या कीजिए
कोई दिल चुराए तो क्या कीजिए
ज़मीं पर खड़े हैं तो कुछ ग़म नहीं
कोई ज़न्नत दिखाए तो क्या कीजिए
हर कोई है मुफलिस यहाँ देखिए
कोई तमन्ना जगाए तो क्या कीजिए
नहीं कोई दूजा तुम्हारे बिना
कोई खाबों में आए तो क्या कीजिए
तुम्हीं तुम बसे हो नज़र में मेरे
कोई नज़रें चुराए तो क्या कीजिए
ये आंसू नहीं बूँद बारिश की हैं
कोई मतलब बताए तो क्या कीजिए
तुम कहते हो हम भूल जाते हैं सब
कोई भूला न जाए तो क्या कीजिए
चंद दिन की ये रौनक बिखर जाएगी
तुम्हें समझ में न आए तो क्या कीजिए
कोई दिल चुराए तो क्या कीजिए
ज़मीं पर खड़े हैं तो कुछ ग़म नहीं
कोई ज़न्नत दिखाए तो क्या कीजिए
हर कोई है मुफलिस यहाँ देखिए
कोई तमन्ना जगाए तो क्या कीजिए
नहीं कोई दूजा तुम्हारे बिना
कोई खाबों में आए तो क्या कीजिए
तुम्हीं तुम बसे हो नज़र में मेरे
कोई नज़रें चुराए तो क्या कीजिए
ये आंसू नहीं बूँद बारिश की हैं
कोई मतलब बताए तो क्या कीजिए
तुम कहते हो हम भूल जाते हैं सब
कोई भूला न जाए तो क्या कीजिए
चंद दिन की ये रौनक बिखर जाएगी
तुम्हें समझ में न आए तो क्या कीजिए
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