जो भी दुख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया
फिर कोई हाथ है दिल पर जैसे
फिर तेरा अहदे-वफ़ा[1]याद आया
जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल
एक-इक नक़्श[2]तिरा याद आया
ऐसी मजबूरी के आलम[3]में कोई
याद आया भी तो क्या याद आया
ऐ रफ़ीक़ो[4]! सरे-मंज़िल जाकर
क्या कोई आबला-पा[5]याद आया
याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया
जब कोई ज़ख़्म भरा दाग़ बना
जब कोई भूल गया याद आया
ये मुहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया
शब्दार्थ:
1. ↑ वफ़ादारी का प्रण
2. ↑ मुखाकृति
3. ↑ हालत,अवस्था
4. ↑ मित्रो
5. ↑ जिसके पाँवों में छाले पड़े हुए हों
1. ↑ वफ़ादारी का प्रण
2. ↑ मुखाकृति
3. ↑ हालत,अवस्था
4. ↑ मित्रो
5. ↑ जिसके पाँवों में छाले पड़े हुए हों
रचनाकार : फ़राज़
1 comment:
वाह! क्या बात है!
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