कोई दिल में आए तो क्या कीजिए
कोई दिल चुराए तो क्या कीजिए
ज़मीं पर खड़े हैं तो कुछ ग़म नहीं
कोई ज़न्नत दिखाए तो क्या कीजिए
हर कोई है मुफलिस यहाँ देखिए
कोई तमन्ना जगाए तो क्या कीजिए
नहीं कोई दूजा तुम्हारे बिना
कोई खाबों में आए तो क्या कीजिए
तुम्हीं तुम बसे हो नज़र में मेरे
कोई नज़रें चुराए तो क्या कीजिए
ये आंसू नहीं बूँद बारिश की हैं
कोई मतलब बताए तो क्या कीजिए
तुम कहते हो हम भूल जाते हैं सब
कोई भूला न जाए तो क्या कीजिए
चंद दिन की ये रौनक बिखर जाएगी
तुम्हें समझ में न आए तो क्या कीजिए
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Thursday 13 May 2010
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3 comments:
Kya keeje...! Is chori kee to FIR bhi darj kara nahi sakte !
Rachana to maan gaye,bahut sundar hai!
हा हा हा ... मान गए जी... आपकी ये दस्तक तो सीधे सीने में लगी!!! बहुत-बहुत आभार!!
"रामकृष्ण"
बहुत सुन्दर रचना है!
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