बचपन का ज़माना होता था
खुशियों का खज़ाना होता था
थी चाहत चाँद को पाने की
दिल तितली का दीवाना होता था
ख़बर न थी कुछ सुबह की
न शामों का ठिकाना होता था
थक-हार के आना स्कूल से
फिर खेलने भी जाना होता था
दादी की कहानी होती थी
परियों का फ़साना होता था
बारिश में कागज़ की कश्ती थी
हर मौसम सुहाना होता था
हर खेल में साथी होते थे
हर रिश्ता निभाना होता था
पापा की वो डांटें गलती पर
मम्मी का मनाना होता था
रोने की वज़ह न होती थी
न हंसने का बहाना होता था
जब कोई दोस्त बुलाता था
तब दौड़ के जाना होता था
रोज़ाना खेल के बाहर से
घर से जल्दी आना होता था
अब नहीं रही वो ज़िंदगी जैसा
बचपन का ज़माना होता था!!?!!
2 comments:
बहुत सुन्दर कविता.
बचपन के दिन भी क्या दिन थे!सच!
अच्छी कविता लिखी है.
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