ये किसकी आहट थी जिसने मुझे सोने न दिया,
आशियाना लूट लिया इसपे भी रोने न दिया।
कारवां लेकर चला था मैं तो तेरी चौखट को,
मोती तेरे श्रृंगार को लाया पर तूने पिरोने न दिया।
कसमकस इतनी थी कि होश उड़ गए मेरे,
होश में लाने को अक्स मेरा तूने भिगोने न दिया।
बहार आई और एक पल में खो भी गई,
खोया मैं भी सरे राह पर गुमनाम ने खोने न दिया.
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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7 comments:
"बहार आई और एक पल में खो भी गई,
खोया मैं भी सरे राह पर गुमनाम ने खोने न दिया"
bahut sundar...
Ram krishna bhai bahut achi rachna.
Saari panktiyan ek se badkar ek hai.
- ZAMEER -
Bahut khub...har line apne aap me khubsurat..badhai
ये किसकी आहट थी जिसने मुझे सोने न दिया,
आशियाना लूट लिया इसपे भी रोने न दिया।
bahut khoob sher hai.
badhiya !
ये किसकी आहट थी जिसने मुझे सोने न दिया,
आशियाना लूट लिया इसपे भी रोने न दिया।
bahut khoob sher hai.
badhiya !
गजब लिखते हो साहब. मजा आ गया आपके ब्लॉग का चक्कर काट कर. फर्क मात्र इतना है की आप अपने भावो को कविता का रूप देते है और मै गुफ्तगू करता हूँ. अच्छे लेखन के लिए मेरी बधाई स्वीकार करे. कभी समय निकाल कर मेरी गुफ्तगू में भी शामिल होने का प्रयास करे.
www.gooftgu.blogspot.com
wow very effective n heart touching lines..... congratulation
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