Friday 12 February 2010

गुमनाम ने खोने न दिया...

ये किसकी आहट थी जिसने मुझे सोने न दिया,
आशियाना लूट लिया इसपे भी रोने न दिया।

कारवां लेकर चला था मैं तो तेरी चौखट को,
मोती तेरे श्रृंगार को लाया पर तूने पिरोने न दिया।

कसमकस इतनी थी कि होश उड़ गए मेरे,
होश में लाने को अक्स मेरा तूने भिगोने न दिया।

बहार आई और एक पल में खो भी गई,
खोया मैं भी सरे राह पर गुमनाम ने खोने न दिया.

7 comments:

Shubham Jain said...

"बहार आई और एक पल में खो भी गई,
खोया मैं भी सरे राह पर गुमनाम ने खोने न दिया"

bahut sundar...

ज़मीर said...

Ram krishna bhai bahut achi rachna.
Saari panktiyan ek se badkar ek hai.

- ZAMEER -

Ravi Rajbhar said...

Bahut khub...har line apne aap me khubsurat..badhai

Alpana Verma said...

ये किसकी आहट थी जिसने मुझे सोने न दिया,
आशियाना लूट लिया इसपे भी रोने न दिया।
bahut khoob sher hai.

badhiya !

Alpana Verma said...

ये किसकी आहट थी जिसने मुझे सोने न दिया,
आशियाना लूट लिया इसपे भी रोने न दिया।
bahut khoob sher hai.

badhiya !

सूर्य गोयल said...

गजब लिखते हो साहब. मजा आ गया आपके ब्लॉग का चक्कर काट कर. फर्क मात्र इतना है की आप अपने भावो को कविता का रूप देते है और मै गुफ्तगू करता हूँ. अच्छे लेखन के लिए मेरी बधाई स्वीकार करे. कभी समय निकाल कर मेरी गुफ्तगू में भी शामिल होने का प्रयास करे.
www.gooftgu.blogspot.com

DEEPAK SHARMA KAPRUWAN said...

wow very effective n heart touching lines..... congratulation

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