Saturday 17 April 2010

मुझे पसंद नहीं है थकना!

ये और बात है कि तू नहीं मेरा अपना
मगर तू वही जिसका मैंने देखा था सपना

कहीं है आग कहीं बर्फ़ की दीवारें हैं
कहीं है धूप कहीं चुलबुली फुहारें हैं

कि कोई आ गया आवाज़ दे रहा है मुझे
उठा तो देखा कि झट से टूटा था मेरा सपना

चला ही जाता हूँ मैं हवा के साथ-साथ
ये मेरा जूनून है मुझे पसंद नहीं है थकना

5 comments:

Alpana Verma said...

बस इसी जूनून को बनाये रखिये..अच्छी रचना .

kshama said...

चला ही जाता हूँ मैं हवा के साथ-साथ
ये मेरा जूनून है मुझे पसंद नहीं है थकना
kya gazab kaha!

Unknown said...

ये और बात है कि तू नहीं मेरा अपना
मगर तू वही जिसका मैंने देखा था सपना|



Very Good Lines.




JUHI

ज्ञान प्रताप सिंह said...

अच्छी रचना|

"प्यासा सावन" said...

Kya Likhte ho Gautam Bhai. Shubhkamnaen!




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