तेरी खुशी के लिए हमने गम उधार लिए
जाने कितनी बार तेरी खातिर लुटा बहार दिए
तुझे रोशनी देने को जलाया दिल अपना
तेरी सलामती को खुद ही जां निसार किए
जाने कितनी बार तेरी खातिर लुटा बहार दिए
तुझे रोशनी देने को जलाया दिल अपना
तेरी सलामती को खुद ही जां निसार किए
हर सांस रखा तेरे कदमों के नीचे
चिलमन हटाकर छिप-छिपके तेरे दीदार किए
नजर न आई तुझे इश्क इस दीवाने की
तूने कितनी बार इस मासूम के शिकार किए
चिलमन हटाकर छिप-छिपके तेरे दीदार किए
नजर न आई तुझे इश्क इस दीवाने की
तूने कितनी बार इस मासूम के शिकार किए
राम कृष्ण गौतम "राम"
5 comments:
तुझे रोशनी देने को जलाया दिल अपना
तेरी सलामती को खुद ही जां निसार किए
आह ~~~~
बहुत खूब ...... क्या बात है
महफ़िल लूट ली आपने
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आभार
तुझे रोशनी देने को जलाया दिल अपना
तेरी सलामती को खुद ही जां निसार किए
बहुत खूब
Ghazab ki poetry hai... Bahut sundar!
Badhia. kamal ki lines hain.
गजब, गजब,गजब......
राम भाई, आप तो छा गए.बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना.
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