किसी की याद में खुद को भुला के बैठ गए
किसी बेवफा से दिल लगा के बैठ गए
*किसी बेवफा से दिल लगा के बैठ गए
पास के फायदों की खातिर हम
दूर के चोट खाके बैठ गए
**
बरस रही थी फिजा में शवाब जब एक दिन
बरस रही थी फिजा में शवाब जब एक दिन
उसी फिजा में हम अपने हाथ जला के बैठ गए
***
कौन कहता है जान जाती है
हम खुद सबों को बता के बैठ गए
****
उसकी चाहत में हो गए तन्हां
अपना सबकुछ गंवा के बैठ गए
*****
कहते थे वो कि मेरे अपने हैं
वो हमसे जी छुड़ा के बैठ गए
******
किसी की याद में खुद को भुला के बैठ गए
किसी की याद में खुद को भुला के बैठ गए
सरेआम किसी बेवफा से दिल लगा के बैठ गए
2 comments:
bahut khoob...
likhte rahiye...keep it up
कहते थे वो कि मेरे अपने हैं
वो हमसे जी छुड़ा के बैठ गए
Sundar alfaaz!
Post a Comment