मेरे सोए ख्वाबों को आज कोई आवाज दे गया,
बेकस पंछी को कोई जैसे इक परवाज दे गया!
बहुत दिनों से मौन थी मेरे जीवन की रागिनी,
आकर उसको कोई जैसे एक नया फिर साज दे गया!
उठती नहीं थी मेरी निगाहें किसी दिलकश हसीं पर कभी,
उसे देखने का फिर कोई मुझे नया अन्दाज़ दे गया!
मुद्दतों से तलाश थी मुझको जिस हमराज की,
आज अपनी ज़िन्दगी का वो हमनशीं सा राज़ दे गया!
याद नहीं गुज़रा हो कोई खुशगंवार लम्हा जीवन में,
मुझ मुफलिस से रहगुज़र को आज कोई ताज दे गया!
रंज-ओ-ग़म के बोझ से था दिल दबा हुआ,
खुशी से मेरे जीवन को फिर कोई नया आगाज़ दे गया!
ज़िन्दा था मुद्दतों से किसी हसीन ग़म के पहलुओं में,
मुझको मेरे ख्वाबों की वो खूबसूरत मुमताज़ दे गया!!
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Thursday 25 February 2010
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3 comments:
JAROOR HO JAEYAE BHAI...
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
मेरे सोए ख्वाबों को आज कोई आवाज दे गया,
बेकस पंछी को कोई जैसे इक परवाज दे गया!
waah! waah!
bahut achchha likhte hain aap.
bahut hi khubsurat khyal hain.
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