लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Tuesday, 27 September 2011
कोई चुपके-चुपके कहता है
कोई चुपके-चुपके कहता है
कोई गीत लिखो मेरी आँखों पर
कोई शेर लिखो इन लफ़्ज़ों पर
इन खुशबू जैसी बातों पर
चुपचाप मैं सुनता रहता हूँ
इन झील सी गहरी आँखों पर
इक ताज़ी ग़ज़ल लिख देता हूँ
इन फूलों जैसी बातों पर
इक शे'र नया कह देता हूँ
एहसासों पर ज़ज्बातों पर
ये गीत-ग़ज़ल ये शे'र मेरे
सब उसके प्यार का दर्पण हैं
सब उसके रूप का दर्शन हैं
सब उसकी आंख का काजल हैं
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2 comments:
वाह बेहतरीन गजल, शुभकामनाएं.
रामराम
खूबसूरत रचना
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