आ कि चाहत का फूल खिलाकर ले जा
ज़िश्त में जो है मेरे पास उठाकर ले जा
तू मेरे ग़म को मेरे पास यूँ ही रहने दे
अपनी खुशियों के वो लम्हात सजाकर ले जा
तोड़ दे मेरी अना फिर भी मुझे फ़िक्र नहीं
मेरे अन्दर की बग़ावत को छिपाकर ले जा
रोज़ गिरता हूँ मगर गिर के संभल जाता हूँ
तुझ में दम है तो मुझे फिर से गिराकर ले जा
कोई सूरज तो नहीं अपना क़हर बरपा करूँ
चाँद हूँ मुझमें शहद अपनी घुलाकर ले जा
मैं तो पत्थर की तरह रोज़ लुढ़कता हूँ सनम
तू जो गंगा है तो फिर मुझको बहाकर ले जा
तेरी खुशबू को हवा बनके बिखेरा मैंने
जो हूँ मैं धूल तो फिर मुझको उड़ाकर ले जा
मैं जो काजल हूँ तो आँखों में बसा ले मुझको
और हूँ दर्द तो अश्क़ों में बहाकर ले जा
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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4 comments:
खूबसूरत गज़ल
तेरी खुशबू को हवा बनकर बिखेरा मैंने
जो हूँ मैं धुल तो फिर मुझको उड़ाकर ले जा
मैं जो काजल हूँ तो आँखों में बसा ले मुझको
और हूँ दर्द तो अश्क़ों में बहाकर ले जा
Behad sundar gazal...behtareen panktiyan!
बेहतरीन...
bahut sundar...
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