लब पे तेरे इकरार-ऐ-मोहब्बत अभी सुना-सुना लगता है
शर्म से चेहरा लाल गुलाबी फूल कँवल का लगता है
दिल की नज़र से टकराए भी एक ज़माना बीत गया
चोट मगर है इतनी ताज़ा जैसा हादसा कल का लगता है
बेखुद होकर मस्त हवाएं ऐसे लहराती थीं
ये जादू तो हल्का-हल्का तुम्हारे आचल का लगता है
हम समझे थे तुम भूल गए हो वो चाहत का अफसाना
आज मगर फिर दर्द सा दिल में हल्का-हल्का लगता है
पास होकर दूर जाने की ये अदा हमें तड़पाती है
तुझ एक के ही न होने से जग सूना-सूना लगता है
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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3 comments:
waah.......soch achhi !
बहुत खूब!!!
बेखुद होकर मस्त हवाएं ऐसे लहराती थीं
ये जादू तो हल्का-हल्का तुम्हारे आचल का लगता है
हम समझे थे तुम भूल गए हो वो चाहत का अफसाना
आज मगर फिर दर्द सा दिल में हल्का-हल्का लगता है
Aprarateem!
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