रुखसत से होकर बैठे हैं ऐसे
खुशियाँ मिली हों ज़माने की जैसे,
नुमाइश भी कोई नहीं करने वाला
सूरत भी नहीं मेरी दीवाने के जैसे,
मैं चुपचाप सहमा हूँ बैठा कहीं पे
कोई भी नहीं है मुझे सुनने वाला,
सभी पूछते हैं हुआ क्या है तुझको
तेरी शक्ल क्यों है रुलाने के जैसे,
जब निकला था घर से बहुत हौसला था
के पा लूँगा मंजिल डगर चलते-चलते,
न अब हौसला है न अब रस्ते हैं
सफर भी लगे अब फसाने के जैसे!
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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2 comments:
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति......।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
एक टिप्पणी-
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आरजू
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"मौत भी शायराना चाहता हूँ।
रोज मिलने का बहाना चाहता हूँ॥
कई दिन से नलमें नहीं था पानी-
आज फु़रसत से नहाना चाहता हूँ॥"
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
क्या बात है !
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.
डॉक्टर डंडा लखनवी साहब का आशीर्वाद भी आप को मिल गया .बधाई.
'सी.एम.ऑडियो क्विज़'
रविवार प्रातः 10 बजे
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