Sunday, 28 March 2010

मैं और मेरी परछाई..?

मैं और मेरी परछाई
बहुत समानता है हममें

मैं चलता हूँ तो ये चलती है
मैं रुकता हूँ तो ये ठहर जाती है

बारिश की बूँदें जब मुझ पर पड़ती हैं
उसका एहसास इसे भी बराबर होता है

ये चौंक उठती है जब मैं तेज़ दौड़ता हूँ
ये सहम जाती है जब मैं ठहर जाता हूँ

मैं और मेरी परछाई
बहुत एकरूपता है हममें

हम दोनों का आकार एक जैसा है
हम दोनों एक जैसे दिखते भी हैं

हमारा वजूद भी तब तक है
जब तक मैं हूँ तब तक ये है

लेकिन एक बात समझ नहीं आई
कैसी अज़ब है ये मेरी परछाई

मैं जब उजालों में होता हूँ
तो ये मेरे साथ साथ रहती है

और जब होता है अँधेरा मेरे चारों ओर
तब क्यों नहीं दिखता इसका कोई छोर

मैं और मेरी परछाई!

4 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर, शुभकामनाएं.

रामराम

EKTA said...

bahut sunder rachna...

EKTA said...

bahut sunder rachna...

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