मुनव्वर है तेरी खुश्बू से ये चौखट मेरा
तेरी रहमतों से ही आबाद है अब घर मेरा
दुनिया तो समुन्दर है 'गौतम' मैं कहीं भी जाउं
पर तेरे बिन होता नहीं कहीं पे भी बसर मेरा
पास होती हो तो उलझनें मिट जाती हैं
दूर होती हो तो फट जाता है जिगर मेरा
क्या कहूं कौन सा है ये रिश्ता तेरा-मेरा
अब तो हर रोज ही करता हूं मैं जिकर तेरा
आंख से आंसू भी निकलें तो परवाह नहीं
इनकी दरिया पे बहकर मिलेगा रहगुजर मेरा
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Wednesday, 17 February 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
आंख से आंसू भी निकलें तो परवाह नहीं
इनकी दरिया पे बहकर मिलेगा रहगुजर मेरा .nice
आंख से आंसू भी निकलें तो परवाह नहीं
इनकी दरिया पे बहकर मिलेगा रहगुजर मेरा
waah! bahut sundar!
क्या कहूं कौन सा है ये रिश्ता तेरा-मेरा
अब तो हर रोज ही करता हूं मैं जिकर तेरा
आंख से आंसू भी निकलें तो परवाह नहीं
इनकी दरिया पे बहकर मिलेगा रहगुजर मेरा
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
Post a Comment