मेरी रूह निकलने वाली होगी
मेरी सांस बिखरने वाली होगी
फिर दामन ज़िन्दगी का छूटेगा
धागा साँसों का भी टूटेगा
फिर वापस हम न आएँगे
फिर हमसे कोई न रूठेगा
फिर आँखों में नूर नहीं होगा
फिर दिल ग़म से चूर नहीं होगा
उस पल तुम हमको थामोगे
हमसे दोस्त तुम अपना मांगोगे
फिर हम न कुछ भी बोलेंगे
आँखें भी न अपनी खोलेंगे
उस पल तुम जोर से रो दोगे
और तुम हमको खो दोगे
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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2 comments:
आखिरी हिचकी तेरे.....
............... शायराना चाहता हूँ.
आते ही दिल खुश हो गया... फिर सुन्दर कविता...
वाह.... बहुत खूब...
बधाई....
सुंदर कविता, जीवन के अंतिम सत्य को उजागर करती हुई ।
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