Sunday, 10 April 2011

तुझपे फ़िदा क्या करूं






मेरे दिल में तू ही तू है
दिल की दवा क्या करूं

दिल भी तू है जां भी तू है
तुझपे फ़िदा क्या करूं


खुद को खोके तुझको पाकर

क्या-क्या मिला क्या कहूं
तेरा होके जीने में क्या
आया मज़ा क्या कहूं

कैसे दिन हैं कैसी रातें
कैसी फिजा क्या कहूं

मेरी होके तूने मुझको
क्या-क्या दिया क्या कहूं

मेरे पहलू में जब तू है
फिर मैं दुआ क्या करूं

दिल भी तू है जां भी तू है
तुझपे फ़िदा क्या करूं


मेरे दिल में तू ही तू है
दिल की दवा क्या करूं
है
ये
दुनिया दिल की दुनिया
मिलके रहेंगे यहां
लूटेंगे

हम
खुशियां हर पल
दुःख
सहेंगे यहां
अरमानों
के चंचल धारें
ऐसे बहेंगे यहां

ये तो सपनों की जन्नत है
सब
ही कहेंगे यहां
ये दुनिया मेरे दिल में बसी है
दिल
से जुदा क्या करूं

दिल
भी तू है जां भी तू है
तुझपे
फ़िदा क्या करूं

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छी अभिव्यक्ति ...

Vivek Jain said...

बहुत शानदार!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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