बना-बना के तमन्ना मिटाई जाती है।
तरह-तरह से वफ़ा आज़माई जाती है॥
जब उन को मेरी मुहब्बत का ऐतबार नहीं।
तो झुका-झुका के नज़र क्यों मिलाई जाती है॥
हमारे दिल का पता वो हमें नहीं देते।
हमारी चीज़ हमीं से छुपाई जाती है॥
'शकील' दूरी-ए-मंज़िल से ना-उम्मीद न हो।
मंजिल अब आ ही जाती है अब आ ही जाती है॥
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Monday, 24 January 2011
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1 comment:
हमारे दिल का पता वो हमें नहीं देते।
हमारी चीज़ हमीं से छुपाई जाती है॥
Wah! Kya baat hai!
Gantantr Diwas kee dheron badhayee!
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