वो "हमें" चाहते हुए भी न जाने
क्यों दूर जाना चाहती थी...
क्यों दूर जाना चाहती थी...
न जाने क्यों अपनी
निगाहों से हटाना चाहती थी...
निगाहों से हटाना चाहती थी...
मिलती थी, बातें भी करती थी पर
अनजानों की तरह...
एक दिन गुमसुम
अकेले रो रही थी...
अकेले रो रही थी...
मैं भी वहीं था...
मैंने पूछा क्या हुआ...
क्यों रो रही हो?
क्यों रो रही हो?
उसने रोती हुई निगाहों से
मेरी ओर देखकर कहा
मेरी ओर देखकर कहा
कुछ नहीं! बस आँखों में कुछ चुभ रहा है..!
2 comments:
इसे ब्लाग4वार्ता पे देखिये तो ज़रा भैया
बोलने का अधिकार बनाम मेरा गधा, और मैं.......!!
गिरीश बिल्लोरे का ब्लाग
bahut hi sundar kavita.
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