Saturday, 14 August 2010

दिवाकर पाण्डेय जी की कविताएँ


दैनिक भास्कर भोपाल में मेरे सहकर्मी, मेरे मित्र हैं
दिवाकर
पाण्डेय
... उन्हीं की लिखी हुई ये कविताएं हैं...

कविता 'एक'

रामचन्द्र की उम्र सत्तर साल है
पर यह उसकी वास्तविक उम्र नहीं है
आठवीं की मार्कशीट से हिसाब से
वह अभी 60 का ही है
हां, 30 साल पहले
जब वह तीस का था
तब लोग उसे 25 साल का समझते थे
उसकी उम्र का गणित उल्टा-पुल्टा हो गया है

खैर, आगे बढ़ते हैं।

रामचन्द्र की एक जवान बेटी भी है
वह उसकी शादी नहीं कर पाया
क्योंकि एक मुनासिब वर ढूंढ़ने का
वक्त ही नहीं निकाल पाया

खैर, आगे बढ़ते हैं।

रामचन्द्र के पास एक खेत भी है
ऐसा वह कहता है
पर गांव वाले ऐसा नहीं मानते
माने भी क्यों उसके पास कोई प्रमाण नहीं है
रामचंद्र की उम्र का गणित उल्टा-पुल्टा हो गया है

दरअसल, सरकारी अभिलेखों के
जोड़-घटाने ने उसकी
ज़िंदगी के गुणा-भाग को बिगाड़ दिया है
वह अपने खेत को अपना इसलिए नहीं कह सकता
क्योंकि सरकारी अभिलेख उसे
ऐसा कहने की इजाजत नहीं देते
उसकी बेटी की शादी इसलिए नहीं हो सकी
क्योंकि सपनों में भी उसे सरकारी अभिलेखों के शब्द
नज़र आते हैं।
अब वह इस गणित तें उलझा है कि
सरकारी अभिलेखों की इबारतें बदलने के
लिए उसके पास कितना वक्त बचा है।

कविता 'दो'

कितना वक्त गुजर गया फाग नहीं गाया
बरसात में कागज की नाव नहीं बनाई
छिपकर टॉफी नहीं खाई
बाग में अमरूद नहीं तोडे़
कदम्ब की छांव में गुलेल नहीं बनाई
नुक्कड़ पर छोटू की इतनी चाय पी
तेरे हाथों की चीनी नहीं महसूसी
बारिश में नहीं नहाए
कितना वक्त गुजर गया
कोई मेहमान नहीं आया
मुण्डेर पर आकर कागा नहीं बोला
अब दोपहर में नींद खुलती है
क्योंकि देर रात महफिल सजती है
मुण्डेर पर चिड़िया नहीं चहचहाती है
नीन्द के लिए मां की लोरी नहीं
डिसप्रिन ली जाती है
वक्त गुजर रहा है टिक...टिक...टिक
वक्त के साथ मैं भी गुजर रहा हूं
खोखला हो रहा हूं मर रहा हूं
फिर भी मुस्कुरा रहा हूं।

4 comments:

kshama said...

Yahi Bharat Munshi Premchandji ka bhi hai!
Swatantrata Diwas ki badhayi! Aaj jobhi ho raha hai,ham sabhi uske zimmedar hain! Aayiye,ek saajha zimmedaari qubool karen aur us dishame apna haath badhayen!

nilesh mathur said...

शानदार रचनाएँ , बेमिशाल, बेहतरीन! बहुत ही सुन्दर! www.mathurnilesh.blogspot.com

Anamikaghatak said...

bahut hi achchha likha hai aapne

ज़मीर said...

Sundar kavita.
swatantrata diwas ki hardik shubhkaamnaye.

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