जाने कैसी है ये जिंदगी
हर पल उखड़ती सांसें
हर पल पिघलता मन
हर मंजर तबाही का
हर लम्हा बरबादी का!
जाने कैसी है ये जिंदगी
हर तरफ बस धूप है
हर कोई गुम है भीड़ में
हर कोई ढूंढ़ता है अपना वजूद
हर किसी को तलाश है खुद की!!
जाने कैसी है ये जिंदगी
हर तरफ बस शोर है
हर कहीं गमों को जोर है
कोई भी खुश नहीं है
हर कोई खोजता है कोई अपना!!!
जाने कैसी है ये जिंदगी
पल में तेज धूप है
पल में सुखद छाया है
कोई यहां तनहा अकेला है
कोई भीड़ में ही घिरा है
कभी सुख कभी दुख है
कभी खुशी कभी गम है
किसी को सबकुछ देती है
किसी के पास कुछ नहीं
किसी का घर भरा है खुशियों से
किसी के पास घर ही नहीं
कौन जाने कैसी है ये जिंदगी
किसे पता है जिंदगी के बारे में
सब कहते हैं जिंदगी बस जिंदगी है
कोई कहता जिंदगी गमों के सिवा कुछ भी नहीं
मैं क्या कहूं क्या है जिंदगी
ये जैसी है वैसी तो है नहीं!!!!
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Wednesday 19 May 2010
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4 comments:
बहुत सुन्दर रचना!
जाने कैसी है ये जिंदगी
हर तरफ बस धूप है
हर कोई गुम है भीड़ में
हर कोई ढूंढ़ता है अपना वजूद
हर किसी को तलाश है खुद की!!
Ek samay tha,jab koyi zindgi ko paheli kahta to mai samajh nahi pati..jeete,jeete zindgi matlab sikhati jati hai..paheli bani rahti hai..
ज़िंदगी तो एक पहेली ही है!किसे समझ आई.
अच्छी भाव अभिव्यक्ति.
ye zindagi k khel to bade ajib hain..
har koi apne dhang se khelta hai..
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