Thursday 11 March 2010

माँ : ज़न्नत का एहसास...


मां, तुम जानती हो
मैं तुमसे कोसों दूर हूं
इसका एहसास तुझे भी है मुझे भी

मां, तू अकेली है वहां
मैं भी तन्हा हूं यहां
इसका एहसास तुझे भी है मुझे भी
मां, तेरी ममता तरसती है
हर पल देखने को मुझे
इसका एहसास तुझे भी है मुझे भी

मां, जब भी तेरी याद आती है
आंखें गवाही देती हैं
तुझे भी हर नटखट की जुबां से
मेरी ही भाषा सुनाई देती है
इसका एहसास तुझे भी है मुझे भी

मां, जब भी कोई औरत
मुझे बेटा कहती है,
दिल में तेरा प्यार और
ज़ेहन में तेरी सूरत उभर आती है,
जब भी करता हूं बंद आंखें,
तेरी ही मूरत नज़र आती है
इसका एहसास तुझे भी है मुझे भी

मां, चाहता हूं मैं कि मुझे रोना ना आए,
पर क्या करूं तेरी ममता भुलाए नहीं भूलती,
तेरा आंचल जो हरदम है सिर पे मेरे,
वही मेरे चारों तरफ झूलती
इसका एहसास तुझे भी है मुझे भी

मां, मैं तुझसे वर्षों से दूर हूं,
तू भी नहीं है मेरे पास
पर मैं जल्द ही वापस आउंगा,
तुझे है पूरा विश्वास
इसका एहसास तुझे भी मुझे है भी!

5 comments:

Randhir Singh Suman said...

तुझे है पूरा विश्वास
इसका एहसास तुझे भी मुझे है भी.nice

ज़मीर said...

Bahut hi sundar kavita likkha hai aapane.
Aapki yeh pankti har kisi ko apni MAA ki yaad dila degi-
मां, चाहता हूं मैं कि मुझे रोना ना आए,
पर क्या करूं तेरी ममता भुलाए नहीं भूलती,
तेरा आंचल जो हरदम है सिर पे मेरे,
वही मेरे चारों तरफ झूलती
इसका एहसास तुझे भी है मुझे भी.

शमीम said...

बहुत ही अच्छी कविता.शुभ्कामनायें.

Shubham Jain said...

maa keliye bahut sundar likhi bhavnaye...

विजय तिवारी " किसलय " said...

भाई राम कृष्ण जी
माँ पर लिखी रचना बहुत अच्छी है,
माँ पर जितना लिखा जाए कभी भी पूर्णता नहीं होगी.
आपका मान के प्रति प्रेम भाव सहज और निश्छल है,
मैं भी अपनी बात निम्नानुसार रखता हूँ :-
युग बदले,
युगनेता बदले,
बदला सकल जहान .
पर न बदला,
इस दुनिया में,
माँ का हृदय महान....
- विजय तिवारी " किसलय "

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