Thursday, 29 September 2011

इश्क़, मोहब्बत और वफ़ा



अल्फाज के झूठे बंधन में
और राज़ के गहरे दामन में
हर शख्स मोहब्बत करता है
हर शख्स फंसा है जकड़न में

हालांकि मोहब्बत कुछ भी नहीं
सब झूठे रिश्ते-नाते हैं
सब दिल रखने की बातें हैं
सब असली रूप छिपाते हैं

अहसास से खाली लोग यहाँ
लफ़्ज़ों के तीर चलते हैं
एक बार इस दिल में आकर वो
फिर सारी उमर रुलाते हैं

ये इश्क़, मोहब्बत और वफ़ा
ये सब कहने की बातें हैं
हम दिल का रोग लगाते हैं
वो इस दिल को तड़पाते हैं
हम देखते हैं बस उनको
वो हमसे नज़र फिरते हैं
हम प्यार से प्यार बढ़ाते हैं
वो धोखा देकर जाते हैं

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सब बेकार की बाते हैं ..फिर भी लोग करते हैं ... अच्छी प्रस्तुति

kshama said...

Aah! Achhee rachana hai!

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