हमने चाहत की बुलंदगी देखी
आँख तरबतर दरख्तों पे यूं लगी देखी
चल पड़ा था माथे से पसीने का जुलूस
लरज़ते होंठ, मोहब्बत की बंदगी देखी
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Saturday, 14 August 2010
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